होमकविताप्रियतम - भाग १




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रबीन्द्रनाथ टैगोर

कवि

रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

प्रियतम – भाग १

आज प्रिये,
बादल की घनेरी
तुम्हारी फिर याद दिला रही है
सोए हुए तूफान को जगा रही है,
क्योकि, इन्ही बदलो के बीच
तुम मिले थे,
तभी, पहली बार, सहमा सा सहसा,
तुम्हारे आकर्षण को देख,
आज पुनः आए हो सामने
फिर बने है हम दीवान…

एक ही जगह, जहाँ तुम्हे
देखते हम, ऊपर
तुम्हे रिमझिम बूंदो से खेलते देखा
हाथो पे बूंदो को पालते देखा,
ऊपर कोई नहीं, एकांत
केवल रिमझिम की मधुर बरसात,
एक हाथ में आँचल पकडे
खुद को सर्द से जकड़े,
थरथरते ओठ देखे,
मुस्कुराते ओठ देखे…

पीताम्बर वस्त्र में, ऐसा जैसा
सूर्य एक गगन में वैसा,
आज बादल भी खुश है
साथ हम और तुम खुश है,
दूर से ही निहार रहे है
आँखो को तड़पा रहे है,
मस्त हवा डोल रही है
दिल की आहे घोल रही है…

हवाओ से बालो को लहराते देखा
तुम्हे खुद से शर्माते देखा,
आज पहली बार प्रिये
तुम्हे इतना निर्मल, शीतल देखा,
आज दिल में तुम्हारे द्वेष
पुरे मिट गए है,
मिटे थे हम कभी अधूरे
आज पुरे मिट गए है…

आज पहली बार
खुद को इतना खुश पाया,
तभी तो प्रातः मंदिर में
जल चढ़ाया,
अब इतना निर्भय हो गया हूँ
की मिर्त्यु का भय नहीं
जिसकी चाह थे, वह मिल गया
अब कोई गम नहीं …

बिछड़ा भी, तब भी अब
नहीं तड़पुँगा, आह से
मिलान की तेरी, चाह से,
अब तुझे पा लिया दिल में
कैसे बिछड़ेगा तू मुझ से,
देखना साथी,
तुझे भी ऐसा हुआ होगा
दर्द में कभी
, आँखो से
आँसू बहा होगा…

हे देव, मुझे बल दे
मैं ये हर्ष सहन कर पाऊ
प्रिय का दर्द, ग्रहण कर पाऊ,
क्यूंकि मैं, साथी का दुःख
देख नहीं सकता,
मुस्कुराते ओठो को रोते
निर्मल मन को तड़पते
देख नहीं सकता,
उसका दुःख मैं जी लू
उसके दुःख में अपना दुःख मिला लूँ,
हे देव, मुझे ऐसी शक्ति दे
हे देव, मुझे साहस
दे…

– श्रीकांत शर्मा

गौरैया और घमंडी हाथी – हिंदी कहानी

एक पेड़ पर एक चिड़िया अपने पति के साथ रहा करती थी। चिड़िया सारा दिन अपने घोंसले में बैठकर अपने अंडे सेती रहती थी और उसका पति दोनों के लिए खाने का इंतजाम करता था। वो दोनों बहुत खुश थे और अंडे से बच्चों के निकलने का इंतजार कर रहे थे।

एक दिन चिड़िया का पति दाने की तलाश में अपने घोंसलें से दूर गया हुआ था और चिड़िया अपने अंडों की देखभाल कर रही थी। तभी वहां एक हाथी मदमस्त चाल चलते हुए आया और पेड़ की शाखाओं को तोड़ने लगा। हाथी ने चिड़िया का घोंसला गिरा दिया, जिससे उसके सारे अंडे फूट गए। चिड़िया को बहुत दुख हुआ। उसे हाथी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। जब चिड़िया का पति वापस आया, तो उसने देखा कि चिड़िया हाथी द्वारा तोड़ी गई शाखा पर बैठी रो रही है। चिड़िया ने पूरी घटना अपने पति को बताई, जिसे सुनकर उसके पति को भी बहुत दुख हुआ। उन दोनों ने घमंडी हाथी को सबक सिखाने का निर्णय लिया।

वो दोनों अपने एक दोस्त कठफोड़वा के पास गए और उसे सारी बात बताई। कठफोड़वा बोला कि हाथी को सबक मिलना ही चाहिए। कठफोड़वा के दो दोस्त और थे, जिनमें से एक मधुमक्खी थी और एक मेंढक था। उन तीनों ने मिलकर हाथी को सबक सिखाने की योजना बनाई, जो चिड़िया को बहुत पसंद आई।

अपनी योजना के तहत सबसे पहले मधुमक्खी ने हाथी के कान में गुनगुनाना शुरू किया। हाथी जब मधुमक्खी की मधुर आवाज में खो गया, तो कठफोड़वे ने आकर हाथी की दोनों आखें फोड़ दी। हाथी दर्द के मारे चिल्लाने लगा और तभी मेंढक अपने परिवार के साथ आया और एक दलदल के पास टर्रटराने लगा। हाथी को लगा कि यहां पास में कोई तालाब होगा। वह पानी पीना चाहता था, इसलिए दलदल में जाकर फंसा। इस तरह चिड़िया ने मधुमक्खी, कठफोड़वा और मेंढक की मदद से हाथी से बदला ले लिया।

कहानी से सीख – कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि एकता और विवेक का उपयोग करके बड़ी से बड़ी मुसीबत को हराया जा सकता है।

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