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रबीन्द्रनाथ टैगोर

कवि

रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

प्यार की भीख

मर जाना लेकिन,
प्यार की कभी भीख मत मांगना,
प्यार भीख से नहीं होता,
जबरजस्ती की नजदीकी से
सुकून की दुरी अच्छी होती है…

– श्रीकांत शर्मा

श्री कृष्ण और पूतना वध – हिंदी कहानी

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कंस का अंत नजदीक आ चुका था। उसे इस बात का पता चल चुका था कि उसकी मृत्यु उसके ही भांजे कृष्ण के हाथों होने वाली है। फिर क्या था, बाल गोपाल को मारने के लिए कंस कई तरह के हथकंडे अपनाने लगा। वह कृष्ण को मारने के लिए शक्तिशाली दानवों को भेजता, लेकिन नटखट कन्हैया की बाल लीला के आगे किसी की नहीं चली।

एक बार कंस ने पूतना नाम की राक्षसी को बाल कृष्ण का वध करने के लिए भेजा। जैसे ही पूतना गोकुल पहुंची, उसने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर लिया। स्त्री का रूप धारण कर पूतना घर-घर जाकर कृष्ण की तलाश करने लगी। कृष्ण की खोज में पूतना को जो भी बालक मिलता, वो उसे अपने विष वाले दूध को पिलाकर मार देती।

जब पूतना कृष्ण के घर पहुंचती है, तब भगवान कृष्ण को पता चल जाता है कि वह एक राक्षसी है। पूतना कृष्ण को गोदी में उठाकर अपना विषैला दूध पिलाने लगती है। कृष्ण को दूध पीते देखकर पूतना सोचने लगती है कि अब यह मर जाएगा। भगवान कृष्ण कुछ देर बाद दूध पीते-पीते ही राक्षसी के प्राण खींचने लगते हैं। दर्द के कारण राक्षसी पूतना कृष्ण को आसमान की ओर लेकर उड़ जाती है और पास के जंगल में कान्हा सहित गिर जाती है। थोड़ी देर बाद ही राक्षसी के प्राण निकल जाते हैं। इस तरह भगवान कृष्ण राक्षसी पूतना का वध कर देते हैं।

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