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रबीन्द्रनाथ टैगोर

कवि

रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

छोटी बाते

छोटी छोटी बाते
मन में रखने से,
मजबूत रिश्ते भी
कमजोर हो जाते है।


शुकदेव और जनक कुमार की आत्मा की खोज

एक समय की बात है, जब भारत के एक गांव में शुकदेव नामक युवक ने अपने जीवन को आध्यात्मिक खोज में समर्पित कर दिया। उसने समय के साथ ब्रह्मचर्य धारण की और अपने गुरु के पास जाकर आत्मज्ञान की खोज करने का निर्णय लिया। उसका गुरु, जो एक उपनिषद पढ़ने के लिए प्रसिद्ध थे, उसके इस निर्णय को खुशी-खुशी स्वीकार किया।

शुकदेव गुरुकुल में अद्भुत श्रद्धा और ध्यान से पढ़ते रहे। वह उपनिषदों के महत्व को समझने और उनके गहरे अर्थ को सुलझाने में अपना समय बिताने लगे। वह आत्मज्ञान की खोज में तन-मन और आत्मा को एक करने के लिए अपनी सारी शक्तियों को लगा दिया।

एक दिन, उनका गुरु उनसे एक अद्वितीय सवाल पूछा, “क्या तुम अपनी आत्मा को पहचान सकते हो?” शुकदेव ने विचार किया और फिर गुरु के साथ आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े।

उनका सफर बहुत ही लम्बा और आध्यात्मिक था। वे वनों में ध्यान और तपस्या करने लगे, जहां वे आत्मा के गहरे रहस्यों को समझने का प्रयास करते रहे। उन्होंने आत्मा के अनंत और अशांत स्वरूप का अनुभव किया और आत्मज्ञान की खोज में सफलता प्राप्त की।

इसके बाद, शुकदेव अपने गुरु के पास वापस आए और अपने अनुभवों को साझा किया। गुरु ने उनके आत्मज्ञान को बड़ी प्रसन्नता से स्वीकार किया और उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया।

इसी समय, एक और युवक जनक कुमार भी आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े। वह शुकदेव के पास गया और उनसे आत्मज्ञान की मार्गदर्शन मांगा। शुकदेव ने उसे उपनिषदों के महत्व का बताया और उसे ध्यान और तपस्या की महत्वपूर्णता के बारे में समझाया।

जनक कुमार ने भी उपनिषदों के माध्यम से आत्मज्ञान की खोज में उत्सुकता से अपना समय बिताया और ध्यान और तपस्या के माध्यम से आत्मा के गहरे अर्थ को समझने का प्रयास किया।

इस रूप में, शुकदेव और जनक कुमार ने आत्मज्ञान की खोज में अपना समय बिताया और आत्मा के गहरे रहस्यों को खोजने में सफलता प्राप्त की। इन युवकों की कहानी हमें यह सिखाती है कि आत्मज्ञान की खोज में समर्पण और ध्यान का महत्व होता है, और यह हमारे जीवन को आध्यात्मिकता और सद्गुणों की दिशा में मार्गदर्शन कर सकता है।

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