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रबीन्द्रनाथ टैगोर

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रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

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राजा और तोता – हिंदी कहानी

एक समय की बात है, किसी एक राज्य में हरिशंकर नाम का राजा राज करता था। उस राजा के तीन बेटे थे। उसकी ख्वाहिश थी कि वह उसका सबसे काबिल बेटा उसकी राजगद्दी संभाले, लेकिन वह इस बाात लेकर संशय में था कि तीनों में से किसे वह अपना राजपाट सौंपे।

एक दिन राजा को एक तरकीब सूझी। उसने उसी समय अपने तीनों बेटों को बुलाया और कहा, “बेटे! आज मैं तुम सब से एक सवाल पूछता हूं, अगर तुम लोगों के सामने एक गुनेगार खड़ा हो तो खड़ा हो तो तुम उसके साथ क्या करोगे?”

इस पर राजा के पहले बेटे ने कहा, “उस अपराधी को सजाए मौत दी जानी चाहिए। ”

वहीं, दूसरे बेटे ने कहा, ” गुनेगार को कालकोठरी में बांध देना चाहिए। ”

जबकि तीसरे बेटे ने कहा, ” पिताजी, हमें उसे सजा देने से पहले इस बात की जांच करनी चाहिए कि उसने सही में अपराध किया है या नहीं ।”

इसपर राजा के तीसरे बेटे ने सभी को एक कहानी सुनाई। एक राजा था, जिसके पास एक बुद्धिमान तोता था। एक बार उस तोता ने महराज से कहा, ” मुझे अपने माता और पिताजी के पास जाना है।” राजा ने उसकी बात नहीं मानी, लेकिन तोता ने हार नहीं मानी। वह लगातार महराज से जिद्द करने लगा कि मुझे माता-पिता के पास जाने दें। अंत में राजा ने तोता की बात मान ली और कहा, “ठीक है तुम अपने माता-पिता से मिलकर आओ, लेकिन वहां ज्यादा दिन नहीं रूकना। ” राजा ने तोता को केवल पांच दिन की अनुमती दी और कहा, तुम पांच दिन में अपने परिवार वालों से मिलकर लौट आना।

इसके बाज तोता पांच दिन के लिए अपने माता-पिता के पास चला गया। छठे दिन जब वह राजा के पास लौट रहा था तो उसने सोचा कि क्यों न वह मराज के लिए कुछ उपहार ले लिया जाए। फिर वह पर्वत कि ओर निकल पड़ा। दरअसल, वह महराज के लिए अमृत फल लेना चाहता था। वहां पहुंचते-पहुंचते रात हो गई। तोता ने पर्वत पर पहुंच कर फल तो ले लिया, लेकिन रात हो जाने के कारण वह आगे नहीं बढ़ा और वहीं रूक गया।

उस रात जब तोता सो रहा था तभी एक सांप वहां आया और उसने राजा के लिए गए अमृत फल को खाने लगा। सांप ने फल को खाया इस कारण उस फल में जहर फैल गया था। हालांकि, तोते को इस बात की भनक तक नहीं थी। अगली सुबह जब वह जगा तो फल लेकर महल की ओर चल पड़ा।

जब वह महत पहुंचा तो खुशी-खुशी सीधे राजा के पास गया और कहा, ” महराज मैं आपके लिए यह अमृत फल लेकर आया हूं। आप इसे खाएंगे तो सदा के लिए अमर हो जाएंगे।” यह सुनकर राजा काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने तुरंत उस अमृत फल को खाने के लिए मांगा। इस पर एक मंत्री ने कहा, ” जरा रूकिए महराज, आप इस फल को बिना जांच किए कैसे खा सकते हैं। एक बार यद देख तो लीजिए कि तोता द्वारा लाया गया यह अमृत फल सही है या नहीं।”

राजा उस मंत्री की बात से सहमत हुआ और कहा कि तुरंत इस फल को एक कुत्ते को खिलाया जाए। राजा का आदेश पाकर सैनिक ने फल का एक टुकड़ा कुत्ते को खिलाया। फल खाते ही कुत्ते की मौत हो गई। यह देख राजा गुस्से से आग बबूला हो गया। उसने क्रोध में आकर तलवार से तोता के सिर को काट दिया। साथ ही फल को फेंकवा दिया।

कुछ साल बाद ठीक उसी स्थान पर एक पौधा निकल आया। यह देख राजा को लगा कि यह उसी जहरीले फल का पौधा है। उसने सभी को आदेश दिया कि उस पेड़ का फल कोई नहीं खाएगा।

कुछ दिन बाद एक वृद्ध व्यक्ति उस पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रूका। उसे भूख भी काफी जोर से लगी थी। उसने उसी पेड़ से फल तोड़ा और खाने लगा। फल खाने के बाद वह बूढ़ा व्यक्ति एक दम से जवान हो गया। राज ने जब यह देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया। उसे समझ आ गया कि वह फल जहरीला नहीं था। उससे पबहुत बड़ी गलती हो गई। उसने बिना सच्चाई जाने तोता को मार दिया। इसे लेकर उसे काफी पछतावा भी हुआ। इसके लिए वह मन ही मन खुद को कोसने लगा।

इधर, तीसरे राजकुमार की कहानी खत्म होने के बाद राजा हरिशंकर ने उसे ही अपना उतराधिकारी नियुक्त किया। इसके बाद राज्य में जश्न मनाया गया।

कहानी से सीख – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी बिना जांच किए किसी को सजा नहीं देनी चाहिए।

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