
वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल 2000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल 3000 ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यों के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है।
हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की 2600 बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र 265 बस्तियाँ थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियाँ सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से 4000 साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। आर्य लोग खानाबदोश गड़ेरियों की भांति अपने जंगली परिवारों और पशुओं को लिए इधर से उधर भटकते रहते थे। इन लोगों ने पत्थर के नुकीले हथियारों से काम लेना सीखा। मनुष्यों की इस सभ्यता को वे ‘यूलिथ- सभ्यता’ कहते हैं। इस सभ्यता में कुछ सुधार हुआ तो फिर ‘चिलियन’ सभ्यता आई। इन हथियार औजारों की सभ्यता के समय का मनुष्य नर वानर के रूप में थे। उनमें वास्तविक मनुष्यत्व का बीजारोपण नहीं हुआ था। ” मुस्टेरियन ” सभ्यता के पश्चात ” रेनडियन ” सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ। इस समय लोगों में मानवोचित बुद्धि का विकास होने लगा था।
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