
बाजार में यूँ ही
निकल जाता हूँ मैं,
कुछ खरीदने नहीं
बाजार का हाल लेने,
इन बाजारो में मुझे
जीवन और उसके संघर्ष
की कसिस दिखती है,
भिखारियों के वेश में
मुझे जीवन का श्राप
दीखता है, मुँह चिड़ाये
नए युगल जोड़ो में दिखती
जीवन की किलकारी,
शराब के नशे में चूर
व्यक्ति में, जीवन से दुरी,
ये सब देखता मैं
बाजार से गुजर जाता हूँ,
पर अपने आप से नहीं
फिर पुनः बाजार, मैं आता हूँ…
– श्रीकांत शर्मा
दुनिया अच्छी है या बुरी – हिंदी कहानी
